शून्य कर दो - विनीत मिश्रा

मुझको फिर से शून्य कर दो

तुम्हारे योग से ही तो पूर्ण हुआ था

फिर भूल गया

मेरा अस्तित्व था नगण्य

तुमसे जुड़े बिन

नए अंकों से मिल कर

मैंने मान लिया था स्वयं को

पूर्ण से भी कुछ अधिक

आज जब अंतरमन से भाग न सका

तो बोध हुआ ये

के तुमने ही तो इस निष्प्राण को

जीवन दिया था

आत्म-ग्लानि से होके विचलित

कर रहा हूँ तुमसे विनती

मुझको फिर से शून्य कर दो

हो सकूँ यदि मैं परिष्कृत

फिर भले तुम पूर्ण कर दो

पर आज मुझको शून्य कर दो